સોમવાર, 13 જુલાઈ, 2015

Zinzuwada state heritage city

Zinzuwada state heritage city
આ દરવાજો વિજ્ય ગેટ કહેવાય છે
સમગ્ર ગુજરાતનું ગૌરવ વધારનાર ઐતિહાસિક સ્મારક છેતેની વિજ્યગાથા ટુંકમાં રજૂ કરુ જરૂર વાંચજો
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विर वनविरसिंहजी झाला (Zinzuwada state)
राज हलपालदेवजी की 17 मू पेढी राजा छत्रछालसिंहजी इस 1407 मे पाटडी राजधानी मे झालावाड मे राज्य करते थे उनके छोटे भाइ
कूंवर वनविरसिंह जो बहूत बहादूर थे उनको रात्रि मे स्वप्न मे माता राज राजेस्वरी ने कहा की
हे विर पूत्र मे तूम पर प्रसन्न हू तूजे मे झींझुवाडा की राजगादी देती हू सूमरा मुसलमान न् वहा मेरे स्थानक पर गौवध कीया प्रजा परेशान हे तूम सूबहा होते ही आक्रमण करो ओऱ वहा राज करो मे तेरी सहायक देवी बनूगी
पाटडी के पास झींझुवाडा ऐक महत्वपूण लश्करी थाना था सोलंकी सिध्धराज जयसिंह ने बनाया था जो मूसलमानो ने जित लिया था
उसका गढ मजबूत था उलको जितना बहूत ही मूश्किल था
विर वनविरसिंहने कहा ये गढ किल्ला जितना बहूत कठीन काम हे हजारो का सैन्य वहा मौजूद रहता हे देवी मा हमारे पूर्वज कभी नही जित शके
तो माता राजल ने कहा तूम पस्चिम दरवाजे से हूमला करो वहा गढ पर श्रीफल चूंदडी मिलेगे मेे तेरे भाले पर देव चकलि बनकर बिराजूगी ये सूकून मिले तब यूध्ध करना विज्य तेरा हे वचन देती हू
रात को बडे भाइ राजा को जगाकर वनविरसिंह ने बात की उनसे ऱाजा सोच भी नही शकते थे की झींझुवाडा जीत सकते हे गम क्यूकी 5000 सूमरा की विशाल सेना वहा मोजूद थी पर विर भाइ वनविरसिंह पर उनको पूरा विस्वास था गले लगाकर अनूमती दी ओर कहा मे गर्व से वहा तेरा राजतिलक करूगा
सूबहा होते ही 500 घूडस्वारो के साथ विर वनविरसिंहने केसरीया कीया झींझुवाडा गढ के नेरूत्य कोने पर कंकू थापा श्रीफल चूंदडी मिले माँ राजल देव चकली बनकर भाले पर बिराजे तब जयजयकार हूइ गढ के पस्चिम दरवाजे से हूमला किया
उधर मा राजल ने सूमरा सैन्य को बिमारी कोलेरा कर दीया झाडा उल्टी ओर कमजोर कर दीया कोोइ शराब मे मस्त थे तभी विर राजवी ने ऊट को आडश रखकर हाथी से दरवाजा तोड दीया
फिर भयंकर यूध्ध हूवा विरता की कसोटी थी वनविरसिंह ने केसरीया किया था रोद् रूप धारन कीया अकेेले 500 सूमरा को काट दीया दो दीन यूध्ध चला 2000 सूमरा को सैन्य ने मार दीया ओर त्राहीमाम जनता का भी साथ मिला बाकी सभी विर घायल शेर वनविरसिंहकी दहाड सूनकर भागने लगे
विज्यनाद हूवा झालावाड का गौरवदीन बना ये महान विज्य
राज छत्रछालसिंहजी भी पधारे गले लगाया स्नेह से विर भाइ को ओर झींझुवाडा गादी पर राज वनविरसिंह का राजतिलक किया जयनाद हूवा तब माँ राजल प्रगट हूवे ओर आशिस दीया की अब से मे सहायक देवी बनूगी ओर सभी तरफ मूसलमान रीयासत होते हूवे भी आपको कभी कोइ हरा नही पायेगा आज तक वहा झाला राजपूतो का राज हे सभी राजगादी बदली पर झींझुवाडा को कोइ कयजीत नही पाया सोमनाथ पर जब आक्मन हूवे तब पहेला यूध्ध यहा होता था पर जित नही पाते मबॊलमान इस किल्ले को और आगे बढते थे ऐकवार तो सोमनाथ का लूटा हूवा धन भी यहा से योजना बनाकर मुसलमान सैन्य को रन मे गूमराह कर वापस लिया
विर वनविर सिंह की ये विजय इतिहास मे सूवर्ण अक्षर मे लिखी गयी —